रास पंचाध्याई के पठन, श्रवण से सहज ही वृंदावन की भक्ति प्राप्त हो जाती है : वल्लभ जी महाराज
आकाशवाणी.इन
चिल्ड्रन पार्क रवि शंकर शुक्ल नगर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठ दिवस श्री धाम वृंदावन के प्रख्यात भागवत प्रवक्ता श्री हित ललित वल्लभ जी महाराज ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत पूजन करवाया तो इंद्र ने क्रोधित होकर ब्रज मंडल में मूसलाधार वर्षा करवाई, भगवान श्री कृष्ण ने गिरिराज पर्वत उठाया और कहा आ जाओ गिरिराज की शरण में ऐसे ब्रज वासियों की रक्षा की. कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने महारास वर्णन करते हुए करते हुए बताया कि रास पंचाध्याई भागवत के पंच प्राण है रास पंचाध्याई के पठन, श्रवण से सहज ही वृंदावन की भक्ति प्राप्त हो जाती है.
रास के दो स्वरूप हैं नित्य और नैमित्तिक नित्य रास वह है जो आज भी वृंदावन में चल रहा है, महारास कामलीला नहीं है बल्कि काम पर विजय प्राप्त करने वाली लीला है कृष्ण के दो स्वरूप, वह साकार है वह निराकार है साकार स्वरूप आज भी विद्यमान हैं “बृंदावनम परित्यज्य पदमेकम ना गच्छति” नित्य स्वरूप कृष्ण आज भी वृंदावन से नहीं जाते। महाराज जी ने आगे बताया कि भगवान ने कुब्जा पर अनुग्रह मामा कंस का वध किया. गोपी उद्धव संवाद की सुंदर व्याख्या की अवंतिकापुरी मैं विद्या अध्ययन करते हुए चौंसठ दिन में चौसठ विद्याओं को ग्रहण किया. गुरु दक्षिणा में गुरु पुत्र को लाकर गुरु माता को दिया जो की मृत्यु को प्राप्त हो चुका था. कंस वध के पश्चात द्वारकापुरी का निर्माण कराया और द्वारकाधीश कहलाए द्वारका में भगवान ने रुक्मणी के साथ विवाह किया, विवाह में भगवान कृष्ण रुक्मिणी की झांकी सजाई गई तो भजन गीतों पर भक्त मग्न होकर झूमने नाचने लगे.
