20 वर्षों में SECL में नियमित कर्मियों की संख्या 22 हजार घटी, यूनियनों का आंदोलन कमजोर
आकाशवाणी.इन
कोरबा, बीते 20 वर्षों में एसईसीएल में नियमित कर्मियों की संख्या 60 हजार से घटकर अब 38 हजार 827 रह गई है। कंपनी के कोयला खदानों में उत्पादन की पूरी व्यवस्था ठेका कर्मियों पर ही अब आश्रित हो गई है। क्योंकि माइंस में निजी कंपनियों के काम का दायरा बढ़ा तो ठेका कर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है। लंबे समय से कर्मियों की नियमित नियुक्ति बंद होना भी रेगुलर कर्मचारियों की संख्या घटने का कारण है। क्योंकि अब तकनीकी पदों पर ही नई भर्ती हो रही है। कर्मियों की संख्या घटने से एसईसीएल में यूनियनों का आंदोलन भी कमजोर पड़ा है।
साल 2003 में एसईसीएल का उत्पादन 30 से 40 लाख टन के करीब था। कंपनी की ओपन खदानें खुली तो साल दर साल एसईसीएल का कोयला उत्पादन बढ़ा। पिछले िवत्तीय साल में कोयला कंपनी ने 163 मिलियन टन कोयला उत्पादन करने में कामयाब रही। दूसरी ओर बीते 20 वर्षों में 60 हजार से घट एसईसीएल में नियमित कर्मियों की संख्या अब 38 हजार के करीब है। कर्मचारियों की संख्या घटने का कोल कंपनी के कोयला उत्पादन पर असर नहीं पड़ा है। आऊटसोर्सिंग कंपनियों के माइंस में उतरने के बाद खनन से लेकर परिवहन का जिम्मा संभालने से ठेका कर्मियों ने रिटायर्ड नियमित कर्मियों की जगह ले ली है। इससे विभागीय उत्पादन कम हो रहा है। दूसरी ओर ठेका कंपनियों को खदान में कोयला निकालने से लेकर ढोने का तक का काम दे दिया गया है। इस कारण खनन काम में स्थायी मजदूरों की संख्या कम हो गई है।
स्पेशल वीआरएस स्कीम का ले लिया लाभ एसईसीएल के अनेक कर्मचारियों ने स्पेशल वीआरएस स्कीम का लाभ लेकर नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया। दूसरी ओर जमीन अधिग्रहण के बदले हर खातेदार को नौकरी देने के बजाय कोल इंडिया पॉलिसी 2012 से अब छोटे खातेदार कंपनी में रोजगार पाने से वंचित हो रहे हैं। अनुकंपा नियुक्ति से खदानों में कार्यरत कर्मचारी ही अब 18 से 45 साल के उम्र के बीच के हैं। लगभग 70 फीसदी एसईसीएल कर्मी 45 से अधिक उम्र के हैं। इनमें से कई जोखिम भरा कार्य करने सक्षम नहीं होने से सरफेस पर ड्यूटी की उम्मीद से काम कर रहे हैं।
अब खदान ही निजी कंपनियों को सौंप रहे एसईसीएल के नियमित कर्मियों की संख्या घटने पर समय-समय पर विभिन्न मांगों को लेकर श्रमिक संगठनों के कोयला खदानों में किए जाने वाले आंदोलनों पर भी असर पड़ा है। एसईसीएल में अब तो निजीकरण का नया दौर भी शुरू हो गया है। पहले आऊटसोर्सिंग के जरिए निजी कंपनियों को खदान में काम सौंपा जा रहा था। लेकिन अब खदानें ही निजी हाथों में खनन के लिए दिया जा रहा है। इसके लिए एमडीओ और रेवेन्यू शेयरिंग मोड की नीतियां अपनाई जा रही है। मगर अब तक इसके विरोध में श्रमिक संगठनों का कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ है।
