Sunday, March 23, 2025
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Vat Savitri 2024 – वट सावित्री व्रत आज, जानिए पूजा विधि, कथा औऱ महत्व

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Vat Savitri 2024: यूं तो महिलाएं सालभर अपने पति, संतान और परिवार की रक्षा के लिए अनेक व्रत करती हैं किंतु वट सावित्री व्रत का महत्व उनके लिए सर्वाधिक है। ज्येष्ठ अमावस्या पर अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला यह व्रत इस बार 6 जून 2024 गुरुवार को किया जाएगा। इस बार चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ और प्रिय नक्षत्र रोहिणी में विराजमान है इसलिए इस व्रत का प्रभाव और भी ज्यादा मिलने वाला है।

इस दिन सत्यवान सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज के पाश से मुक्त करवाया था। ज्येष्ठ अमावस्या को भावुका अमावस्या भी कहा जाता है और इस दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है। परंपरा भेद से दक्षिण के राज्यों में वट सावित्री पूर्णिमा व्रत भी किया जाता है जो 15 दिन बाद अर्थात् ज्येष्ठ पूर्णिमा पर 21 जून को किया जाएगा।

वट सावित्री व्रत में वट अर्थात् बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। व्रत करने वाली महिलाएं वट वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री तथा यम की मूर्ति स्थापित करें। प्रात:काल वट वृक्ष की जड़ में पानी डालते हुए उसके चारों ओर कच्चा सूत लपेटते हुए तीन बार परिक्रमा करें। जल, मौली, रोली, भिगोया हुआ चना, पुष्प तथा धूप से मूर्तियों और वृक्ष का पूजन करें। इसके बाद सत्यवान सावित्री की कथा सुनें या पढ़ें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उस पर यथाशक्ति रुपये रखकर अपनी सास या सास के समान किसी सुहागिन स्त्री को देकर उनके चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें।

भद्र देश में राजा अश्वपति राज किया करते थे। उनको कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने यज्ञ करवाया। यज्ञ से उन्हें एक पुत्री उत्पन्न हुई जिसका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री युवा होकर अत्यंत रूपवान और गुणवान बनी किंतु उसे योग्य वर नहीं मिल रहा था। तब राजा ने उसे स्वयं ही अपने लिए योग्य वर तलाशने भेजा। तब सावित्री तपोवन में पहुंची। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन अपने पुत्र सत्यवान के साथ निवास कर रहे थे क्योंकि उनका राज्य किसी शत्रु ने छीन लिया था। वहां सावित्री को सत्यवान पसंद आ गया और उसने सत्यवान को पति के रूप में चुन लिया। इधर नारदजी को यह बात पता लगी तो उन्होंने राजा अश्वपति को कहा कि सत्यवान गुणवान प्रतापी है किंतु वह अल्पायु है और शीघ्र ही उसकी मृत्यु होने वाली है। यह सुनकर राजा चिंतित हो गए और उन्होंने सावित्री को समझाने का प्रयास किया किंतु सावित्री मन ही मन सत्यवान को पति के रूप में वरण कर चुकी थी। सावित्री के हठ के आगे अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री को सत्यवान की मृत्यु का दिन नारदजी ने पहले ही बता दिया था इसलिए सावित्री ने तीन दिन पहले से व्रत प्रारंभ कर दिया था। हर दिन की तरह सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो इस दिन सावित्री भी उसके साथ गई।

सत्यवान और सावित्री कुछ पल वट वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे तभी वहां यमराज आए और सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। सावित्री को यमराज ने काफी समझाने का प्रयास किया किंतु वह नहीं मानी तो यमराज ने उसे वरदान मांगने को कहा, सावित्री ने एक-एक कर पहले अपने सास-ससुर की नेत्र ज्योति मांगी, फिर राज्य पुन: मिल जाने का निवेदन यमराज से किया और अंत में अपने अखंड सौभाग्य का वरदान मांग लिया। यमराज ने प्रसन्न होकर तथास्तु कहा और सत्यवान पुन:जीवित हो गया और वे अपने राज्य में सुख से रहने लगे। वह दिन ज्येष्ठ अमावस्या का था इसलिए तबसे इस दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है।